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Tuesday 22 May 2012

एक राह यह भी

; ट्विन्स पोतों अहान-अयान के साथ डॉ शिल्पा गोयल


छोटी छोटी बातें जीवन में रंग भर देती है न? उपर दिया फोटो मेरी जेठानी संतोषजीजी का है.वे मेंहंदीपुर बालाजी के महंत की बेटी हैं.मंदिर के भीतर लगी 'गणेश पुरी जी' की प्रतिमा उनके दादाजी की है.जेठ साहब -दादा- राजस्थान गवर्नमेंट जॉब में लेबर कमिश्नर थे.बहुत ज्ञानी धर्मग्रन्थ कंठस्थ और क्लासिकल संगीत के शौक़ीन.

शोर्ट टेम्पर्ड.पर ...जब अच्छे मूड में होते हैं हँसा हँसा कर लोट पोट कर देते हैं.उनके और मेरे बीच कई बार पुराने गानों का कम्पीटिशन होता है और.....मैंने उन्हें कभी जीतने नही दिया.

आम घरों की तरह हम भी एक दुसरे से रूठते भी थे और मनाये भी जाते थे. संतोषजीजी और हमारे आमने सामने 'हॉट टाक' कभी नही हुई. किसी बात पर वो नाराज हो जाती तो बोलना बंद कर देती. एकदम बंद.और शुरुआत कभी नही करती थी अपनी ओर से. बडी जो है.हा हा हा!

शुरू में मुझे इतना पता भी नही चलता था.हर उम्र में व्यक्ति अपने आपको बहुत अक्लमंद समझता है जबकि ऐसा होता नही है.और यही चीज उसे अपनी गलती स्वीकारने नही देती.

अपन भी अक्लमंद नम्बर वन. हम क्यों झुके? छोटे हैं इसका मतलब ये है कोई भी हमे डांट दे?कुछ भी बोल दे? ....पर समय के साथ ये महसूस हुआ. दोनों ओर से खींचने पर डोरियाँ,धागे टूट जाते हैं...........किसी से हमारी नाराजगी सबसे ज्यादा कष्ट हमी को देती है.
है ना?
'इनके' और जीजी के बीच कुछ हुआ. दोनों ने एक दुसरे से बोलना बंद कर दिया. शादी से पहले जीजी इनको बहुत प्यार से रखती थी. बाद में....कोई बड़ा ऐसा ना था जो दोनों पक्षों को समझता, समझाता.  देखा...घर में ही लोग राजनीति चलाते हैं.जीजी की शादी हमसे दस साल पहले हुई थी.बच्चे नही हुए...............
खेर ...अपनी ननद के घर हम पहुंचे 'यज्दी' से. तब 'हमारे पास' कार नही थी.

'' 'चलो.हम नही जायेंगे.दादा की कार खड़ी है वो यहीं है.''

''तो दादा आपको मारेंगे? संतोष जीजी या छोटी जीजी (इनकी बडी बहिन) हमे घर से निकाल देंगे?''- मैंने जवाब दिया.

''कुछ बोल दिया तो मुझसे सहन नही होगा''-'ये' अपनी मर्जी से तिल का ताड़ बना रहे थे.

 मैंने अंदर जाते ही देखा जीजी,दादा, छोटी जीजी सब बाते कर रहे थे. मुझे देखते ही दादा हँसने लगे. बस...संतोष जीजी ने मुंह फेर लिया. मैंने पैर छूने के लिए हाथ बढाये. इन्होने पैर साडी में घुसा लिए. एक बार तो मैं तिलमिला गई. दिमाग घूम गया.

कोई जब नाराज होता है तो यही कष्ट तो देना चाहता है सामने वाले को. आप तिलमिलाए उनका उद्धेश्य पूरा हुआ. हा हा हा ! अरे भई जो अपना है उससे कैसी नाराजगी ...और जो अपना नही है उससे क्या नाराजगी !!

अपन ने भी जीजी के दोनों पाँव बाहर निकाले और छू लिए. गले लगने की आदत थी, सो गले से चिपक गये. जीजी ने हल्का सा धक्का दे के धकेल दिया....मेरी मेनका भाभी,जीजी,जेठानी अपने इस विश्वामित्र की परीक्षा ल रही थी मानो ....अब हम कोई विश्वामित्र या संत महात्मा तो है नही. इंदु तो एक बेशर्म औरत का नाम है. मान नही, अपमान नही, तथाकथित आत्म-सम्मान नही. सचमुच?गले से लिपटी रही. जीजी का गुस्सा सातवे आसमान पर.

'टीटू! बडी मम्मी के पैर छुओ और ऋतू तुम भी.'- अंदर से मैं बहुत विचलित हो रही थी किन्तु ....मैं ये आरोप कत्तई नही सह सकती कि किस खानदान की लड़की आई है घर में और... माँ-बाप ने....'

''सुनिए. अंदर आइये.''
......................
मैं 'इनका' हाथ पकड़ कर ले आई.
'इन्होने' सबके पाँव छुए. अपनी भाभी के नही छुए.
''भाभी के पैर छूइए.बहुत प्यार से  बड़ा किया है इन्होने आपको. माफ़ी मांगो इनसे.कल माँ कुछ कह दे तो ऐसे ही मुंह फुलाओगे उनसे. नही? क्योंकि वो आपकी माँ है. तो...ये क्या है? ''-जीजी और इनको इमोशनल ब्लेक मेल किया मैंने.

इन्होने पैर छुए.''भाभी! माफ कर दो'' गोस्वामीजी ने किसी अच्छे बच्चे की तरह मेरी बात मान ली थी.

''जीजी! मैं पराये घर से आई हूँ. मैं बुरी हो सकती हूँ. ये तो आपके बच्चे हैं.टीटू ऋतू को कौन मैं अपने बाप के घर से लाई हूँ.ये भी तो आपके है ना? हम सबको माफ कर दो.इन्हें गले लगाओ. मेरी शक्ल नही देखनी है मत देखो.बाहर चली जाती हूँ किन्तु इनसे बोलो''

 ''कमलजी ने 'उसको' ये बोला.'उसके' सामने ये बोला'' शिकायतों का पिटारा खुला.भडास निकली.
'उसको' उसके' 'ये' 'वो' बहुत हैं जो आग लगाने को तैयार बैठे मिलेंगे. किन्तु क्या हम ना समझ हैं? ईश्वर ने हमे दिमाग दिया है और एक जुबान भी.जो ये बोले-'हमारे मामले में बोलने का अधिकार किसी को नही है'

उस दिन के बाद ऐसी स्थिति कभी नही आई.दोनों पोते तो जीजी और दादा के बेहद लाडले हैं. जब भी मिलते हैं सब बहुत प्यार से मिलते हैं ना मिले तो भी एक खुशी है कि हमारे बीच प्यार जिन्दा है.
क्या विचार है आपका?
लो.....आत्मश्लाघा लगने लगा? नही. जीवन जीने का 'एक' तरीका है ये तो.  आगे जैसी आप की मर्जी. किन्तु  ऐसिच ही हूँ मैं तो -तथाकथित स्वाभिमान हैइच नही.हा हा हा
                                               संतोष जीजी ,बिटिया अनुभा और घनश्याम दादा

1 comment:

  1. माता रानी! सलाम अर्ज़ करती हूँ!!!
    कित्ते दिनों बाद फुर्सत मिली भाग कर आपके ब्लॉग की घंटी बजा दी
    दरवाज़ा खुला तो मज़ा आ गया.
    आपका भी जवाब नहीं, मुझे परवीन साहिबा का एक शे'र याद आ गया :
    " उसकी खफगी जाड़े की नरमाती धूप
    पारो सखी इस हिद्दत को हंस खेल के सह .."
    वैसी आप नही न!!
    कमाल हो आप भी! .

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