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Sunday 30 June 2013

आखिर कब तक ?????

                                      (चित्र गूगल से साभार )                  
                                                        



क्या नाम रखूं उनका ?? एक हो तो नाम दे दूँ पर ये तो कई हैं . सबकी कहानी एक सी।  चलिए एक की कहानी बताती हूँ आज ....न न दो की . दोनों सगी बहनें। सबसे बड़ी ग्यारसी .शायद ग्यारस -एकादशी- के दिन पैदा हुई होगी इसलिए उसका नाम ग्यारसी रख दिया गया था। फिर एक भाई। तीसरे  नम्बर की धापु।  'धापना' यानि पेट भरना या तृप्त हो जाना.धापू नाम इसी 'धापना ' शब्द से बना है।

ज्यादा बेटियां हो जाने पर एक का नाम 'धापु ' रखने की परम्परा आज भी है राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्र में। लोगों का विश्वास है कि  ऐसा करने पर और लडकियाँ पैदा नही होती। पर.......... धापू के दो छोटी बहने और भी है।
धापु  बड़ी आँखें ,तीखी नाक, हल्के से उठे हुए दांत और सांवला रंग। पढाई में उसका बिलकुल मन नही लगता। बहुत कोशिशों के बाद किताब भर पढना सीख पाई वो। अब सरकार की इच्छा और आदेशानुसार बच्चों को फ़ैल तो करना ही नही है। चाहे वो साल भर में एक सप्ताह भी स्कुल नही आया हो.
धापू स्कुल नियमित आती है. 'स्लो लर्नर' है। पर ...आठवी तक पहुँच ही गई।


बहुत कम बोलने वाली और हमेशा मुस्कराती  रहने वाली लडकी है धापु। किसी काम के लिए मना नही करती. बच्चे बतलाते हैं कि  घर का काम भी सबसे ज्यादा वो ही करती है . खाना बनाने से ले कर पानी भरने गाय ढोरो के घास काटकर लाने तक का काम करती है वो। उस पर एकदम समय पर स्कुल पहुँच जाती है।

'' तुम में से किस किस की शादी हो गई ?? हाथ उपर करो.''- किसी टीचर ने पूछा।

लगभग पांच साल से पंद्रह साल के करीब बीस बच्चों ने हाथ ऊपर कर दिये. 


'' मेडम! इसकी भी शादी हो गई और उसकी भी। हाथ ही नही उठा रहे हैं ये झूठे कहीं के. और धापू की भी हो गई इसकी तो दो बार हो गई और इसकी बहन  की तीन बार ''

''क्यों तेरे बाप का क्या बिगड़ रहा है?? एक बार करे ,दो बार करे या दस बार मेरे बापू की मर्जी । तेरी बहन की भी तो तेरे बापू ने दो बार शादी करी थी कि  नही??? '' - धापू की दस वर्षीय छोटी बहन अनछी (अनचाही) गुस्से में चिल्लाई। उसका चेहरा लाल हो कर  तमतमा रहा था।


जाने कब वो अपने बापु को बुला लाई। बाप रे ! अब झगड़ा होगा . क्या करें ??? शहरों में पेरेंट्स को इतना टाइम ही नही कि वो स्कुल छोटी छोटी बातों के लिए स्कुल जाए पर ....गाँव में ??? खूब समय है लोगों के पास।
 औरतों को तो काम के आगे फुर्सत नही मिलती पर आदमियों को .... काम का ज्यादा टेंशन नही। खेत हांकने के सिवा बाकी सब काम औरते ही करती है।


धापू के बापू हेमराज ज्यादा चालक या धूर्त नही। गाँव का यह रंग उस पर कम चढ़ा है दूसरों की तुलना में।

' मैं तो नही आता मेडम  जी! पर ये छोरी ऐसी रोती  हुई आई . मैंने सोचा छोरे छोरी आपस में लड़े होंगे और आपको पता नही होगा। कहीं मारपीट न करने लग जाए इसलिये……। ''  हेमराज बोला।
'' गांवों में आज भी 'यह' सब होता है। धापू दो साल की थी और इसकी बड़ी बहन सात साल की. मैंने बचपन में ही इनकी शादी कर दी। छोटी दोनों बेटियों को भी 'निपटा ' दिया। एक ही मंडप में चारों बहनों की शादी कर दी। बाद में इनकी उम्र के छोरे नही मिलते।'' धापु के बापू ने जैसे हमें समझाते हुए कहा।

'' पर .... दो दो तीन तीन बार शादियाँ ….???? '' 

''रतनी का ब्याह जिस छोरे से हुआ वो छोटा रह गया। वो लम्बी तडांग निकली। छोरा 'गोटिया' (कद में छोटा ) रह गया। तो मैंने रिश्ता तोड़ दिया। दोनों बहनों की शादी एक ही घर में हुई थी। इसलिए धापु का रिश्ता भी टूट गया। दोनों को दुसरे घर देना पड़ा मतलब 'नाते' देना पड़ा  '' 

''पहले वाले ने 'झगड़ा' लिया होगा??'' मैंने पूछा।

''हाँ पंच बैठे, रतनी रुपाली (सुंदर ) थी। उसका झगड़ा तीन लाख में टूटा। दूसरे कुँवर साहब (दामाद ) ने पहले वाले को डेढ़ लाख रूपये दिए और डेढ़ लाख मुझे. धापु के पचास हजार ही मिले। वो रुपाली नही है न इसलिए।''

 .................

रतनी बहुत सुंदर थी। छरहरा बदन गोरी चिट्टी। दूसरा पति साल भर प्रेम से रहा। फिर बात बिना बात उसे रोज मारता। हाथ , लात,घूंसे से। लकड़ी डंडा जो हाथ में आया पीटने लगता। एक दिन वो ससुराल छोडकर मायके आ गई।
उसके पति ने रतनी को नही छोड़ा था। उसकी पत्नी खुद घर छोडकर आई थी। यही चाहता था वो। उसे इंतजार था बस उस दिन का जब रतनी तीसरे घर जाती। 

और ...... फिर एक बार रतनी का रिश्ता पक्का किया गया। अब झगड़े की रकम उसके दुसरे पति को मिलने वाली थी।

चार लाख में 'झगड़ा' टूटा।


एक लाख में वो कम सुंदर नई बीवी ले आया। अब उसके पास तीन लाख नकद थे। वो मोटर साइकल खरीद सकता था। नई दुधारू भैंस खरीदने के बाद भी वो पैसे वाला था। बीस हजार रूपये उसने अपने नये ससुर को भी दे दिए।


'थां (आप) तो म्हने नही बेचोगा न ??? (आप तो मुझे नही बेचोगे न? ) '-रतनी ने अपने पति से सवाल किया।  'नाते' जाना और 'झगड़ा लेना' का मतलब समझने लगी थी अब वो। जिस रिवाज को विधवाओ,परित्यक्ताओ के वापस घर बसाने के लिए शुरू किया गया था उसके विकृत रूप को भी समझने लगी थी।  

'नहीं। कभी भी नही।' उसके पति ने गले लगाते हुए जवाब दिया। 
                  
                                              










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