'' एक बच्ची है तीन दिन की। कोई गोद लेना चाहे तो उन्हें बताओ। अच्छा परिवार हो और आर्थिक स्थिति अच्छी हो ''
'अरे ! मेरे परिवार में ही है मेरी भतीजी। उसके आठ साल बाद भी बच्चा नही हुआ। खूब इलाज करवाया। कुछ ऐसी प्रोब्लम है कि होगा भी नही ऐसा डॉक्टर्स ने जवाब दे दिया है।' सुनीता ने बताया।
अगले दिन ही वे दोनों पति पत्नी अपने पेरेन्ट्स के साथ अपने घर आ गये।
समाज कल्याण अधिकारी से पहले उनके एक सहायक ने पूरा इंटरव्यू लिया। और बताया कि एक फॉर्म भरना होगा और जरूरी कागजाद लगाने होंगे। फॉर्म मांगने पर उन्होंने अपनी टेबल का सारा सामान उलट पुलट क्र देख लिया पर फॉर्म नही मिला.
'साहब ! फॉर्म अलमारी में है और उसकी चाभी भेरू लाल के पास है वो बाहर काम से गया हुआ है '- ऑफिस के क्लर्क ने भटनागर साहब के पूछने पर जवाब दिया।
'देखिये मैं कल मेडम के घर पहुंचा दूंगा।वो आपको आपके शहर भिजवा देगी . जी आजकल तो कुरियर सर्विस इतनी अच्छी है न कि अगले ही दिन आपको फॉर्म मिल जायेगा।' भटनागर साहब ने बच्चे को गोद लेने वाले दम्पत्ति को बड़ी विनम्रता से जवाब दिया।
'सर ! पेपर्स यानि डोक्युमेन्ट्स क्या क्या चाहिए ???'
' वो तो .... वो तो इन्हें मालूम है ' क्लर्क की तरफ इशारा करते हुए भटनागर साहब बोले।
' जी मेरिज सर्टिफिकेट, डेट ऑफ़ बर्थ, तीन साल के इन्कम टेक्स रिटर्न, आय प्रमाण पत्र,मेडिकल रिपोर्ट आप दोनों की और……और तो मुझे याद नही है। हाँ आप दोनों का फोटो ,मकान का फोटो ,तीन पड़ोसियों की और से चरित्र प्रमाण पत्र ,पुलिस की और से भी एक लेटर लाना होगा. '-क्लर्क ने जवाब दिया;
पन्द्रह दिन बाद पूरी फाईल तैयार करके सास बहु आईं।
' मेडम! मकान के पीछे का फोटो तो आपने लगाया ही नही और डॉक्टर से लिखवा कर भी लाना था कि अब आपके बच्चे नही होंगे ' भटनागर साहब ने डोक्युमेन्ट्स में रह गई कमी की और इंगित किया.
'सर! ये तो आपने बताया ही नही था।फिर ये कोई डॉक्टर क्यों लिखकर देगा ' - महिला की सास ने दुखी स्वर में बोला।' सर! हम इतनी दूर से आते हैं हमारा शहर दूर है यहाँ से। आप एक साथ लिखकर दे दिजिये प्लीज़ '
'जी अभी तो चाइल्ड एडोप्शन कमिटी फाइनल करेगी। हमारे साहब देखेंगे। आपके शहर के समाज कल्याण विभाग वाले आपके घर का मुआयना करेंगे। आपकी रिपोर्ट भी हमे भेजेंगे तब ..........'
' बुआ ! कोई भी डॉक्टर ये लिख कर देने को तैयार नही कि मेरे बच्चे नही होंगे। अब क्या करूं ?? और समाज कल्याण विभाग से भी एक आदमी आया था। एक हजार रूपये मांग रहा है रिपोर्ट देने की। उसने सही रिपोर्ट बनाकर नही दी तो आगे कुछ नही हो सकता ऐसा वो बोल रहा है। क्या करूं??? ' - प्रियंका ने फोन पर बताया।
' दे दो उसे रूपये। स्साले कुत्ते ने रिपोर्ट सही नही दी तो हमारी फाईल रिजेक्ट हो जाएगी '- बड़े भैया ने प्रियंका को समझाया।
अब हमे एडोप्शन कमेटी को भी तो खुश करना था। उनकी और से ना हो गई तो ???
'सर! वो जो बच्ची हॉस्पिटल में लाई गई थी उसे एक दंपत्ति गोद लेना चाहते हैं। आप की स्वीकृति भी चाहिये. प्लीज़ .... बच्ची एक अच्छे परिवार में चली जाएगी। आप कुछ करिये प्लीज़ '
बड़ी बेरुखी से उन्होंने जवाब दिया - 'आपने मुझ से मिलना जरूरी नही समझा? हमारे पास कोई बच्चा बच्ची नही है. आप डाइरेक्ट कलेक्टर साहब से मिल लिये. उनके पास या समाज कल्याणअधिकारी के पास बच्चा हो तो उन्ही से ले लिजिये. हमारे पास बच्चा है ही नही। आपने पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष से फोन करवाया। सिफारिश से काम नही होता है हमारे यहाँ. समझी आप??- ये वो महाशय थे जिन पर जिम्मेदारी थी 'ऐसे'बच्चो को परिवारों से जोड़ने की।
'सर! हमे समाज कल्याण विभाग में किसी ने नही बताया कि आप से भी मिलना है. हम दस बार आपके घर आ जाते सर!' - अपने उबलते क्रोध को दबाकर 'इन्होने जवाब दिया।
थेंक गॉड ! कलक्टर साहब से हमारी मीटिंग वहीँ सर्विस करने वाले मेरे चचेरे भाई ने करवाई। उन्होंने समाज कल्याण अधिकारी को बुलाकर 'डोज़ ' दी। और पेपर्स तैयार हो गये।
'वैसे अनाथालय में एक भी बच्चा नही है। आप देख लिजिये. हो सकता है आपकी किस्मत का कोई बच्चा मिल जाये आपको'- समाज कल्याण अधिकारी महोदय ने पेपर से तैयार करके प्रियंका और उसके पति को देते हुए कहा। हाँ वो बधाई देना न भूले नये नये पापा मम्मी बनने वाले दम्पत्ति को।
................................
'पालना घर' के अधिकारी भी किसी मंत्री या कलेक्टर से कम न थे। उन्होंने भी खूब फ्राई किया।
चूँकि हमे बच्ची को लेना ही था ........हम सब सहन करते रहे।उस समय पालना घर में दस बच्चे थे आठ लडकियाँ दो लड़के।
और……आखिर में 'वो' गुडिया प्रियंका और उसके पति की गोद में दे दी गई। पालना घर के संचालक बड़े ही भावुक और अच्छे इंसान थे। बोले - ' आपको कोई परेशानी तो नही हुई?? मेरे स्टाफ से कोई शिकायत ……कोइ प्रोब्लम ??'
'नही नहीं हमे सबने बहुत सपोर्ट किया है सर! ' - हम सभी एक साथ बोल पड़े।
कोई दंपत्ति जब बच्चा गोद लेना चाहता है तो उसे ढेर सारी प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है……इतनी कि आधे से ज्यादा लोग उन से घबरा कर ही बच्चा गोद लेने की हिम्मत नही जुटा पाते। प्रियंका और उसके पति हर परेशानी का सामना करने को तैयार थे। प्रियंका की सास की हिम्मत से ही यह सब हो पाया . और……गुडिया गोद में आते ही वे सब भूल गये परेशानी, भाग दौड़, लोगों की बे-अदबियाँ, उनकी निष्ठूरता … सब कुछ।
उनका चाँद उनकी गोद में था। और आज…….इन कामों में मैं अकेली नहीं ....प्रियंका का परिवार भी इस पुनीत कार्य में जुड़ गया है मुझ से। वे निसंतान दम्पत्तियों को मोटिवेट करते हैं कि………वे भी एक चाँद अपने घर ला सकते हैं। मैं खुश हूँ . आप????? आइये इस मिशन में शामिल हो जाईये न। :)
प्रियंका अपने पति और अपनी गुडिया के साथ
'अरे ! मेरे परिवार में ही है मेरी भतीजी। उसके आठ साल बाद भी बच्चा नही हुआ। खूब इलाज करवाया। कुछ ऐसी प्रोब्लम है कि होगा भी नही ऐसा डॉक्टर्स ने जवाब दे दिया है।' सुनीता ने बताया।
अगले दिन ही वे दोनों पति पत्नी अपने पेरेन्ट्स के साथ अपने घर आ गये।
समाज कल्याण अधिकारी से पहले उनके एक सहायक ने पूरा इंटरव्यू लिया। और बताया कि एक फॉर्म भरना होगा और जरूरी कागजाद लगाने होंगे। फॉर्म मांगने पर उन्होंने अपनी टेबल का सारा सामान उलट पुलट क्र देख लिया पर फॉर्म नही मिला.
'साहब ! फॉर्म अलमारी में है और उसकी चाभी भेरू लाल के पास है वो बाहर काम से गया हुआ है '- ऑफिस के क्लर्क ने भटनागर साहब के पूछने पर जवाब दिया।
'देखिये मैं कल मेडम के घर पहुंचा दूंगा।वो आपको आपके शहर भिजवा देगी . जी आजकल तो कुरियर सर्विस इतनी अच्छी है न कि अगले ही दिन आपको फॉर्म मिल जायेगा।' भटनागर साहब ने बच्चे को गोद लेने वाले दम्पत्ति को बड़ी विनम्रता से जवाब दिया।
'सर ! पेपर्स यानि डोक्युमेन्ट्स क्या क्या चाहिए ???'
' वो तो .... वो तो इन्हें मालूम है ' क्लर्क की तरफ इशारा करते हुए भटनागर साहब बोले।
' जी मेरिज सर्टिफिकेट, डेट ऑफ़ बर्थ, तीन साल के इन्कम टेक्स रिटर्न, आय प्रमाण पत्र,मेडिकल रिपोर्ट आप दोनों की और……और तो मुझे याद नही है। हाँ आप दोनों का फोटो ,मकान का फोटो ,तीन पड़ोसियों की और से चरित्र प्रमाण पत्र ,पुलिस की और से भी एक लेटर लाना होगा. '-क्लर्क ने जवाब दिया;
पन्द्रह दिन बाद पूरी फाईल तैयार करके सास बहु आईं।
' मेडम! मकान के पीछे का फोटो तो आपने लगाया ही नही और डॉक्टर से लिखवा कर भी लाना था कि अब आपके बच्चे नही होंगे ' भटनागर साहब ने डोक्युमेन्ट्स में रह गई कमी की और इंगित किया.
'सर! ये तो आपने बताया ही नही था।फिर ये कोई डॉक्टर क्यों लिखकर देगा ' - महिला की सास ने दुखी स्वर में बोला।' सर! हम इतनी दूर से आते हैं हमारा शहर दूर है यहाँ से। आप एक साथ लिखकर दे दिजिये प्लीज़ '
'जी अभी तो चाइल्ड एडोप्शन कमिटी फाइनल करेगी। हमारे साहब देखेंगे। आपके शहर के समाज कल्याण विभाग वाले आपके घर का मुआयना करेंगे। आपकी रिपोर्ट भी हमे भेजेंगे तब ..........'
' बुआ ! कोई भी डॉक्टर ये लिख कर देने को तैयार नही कि मेरे बच्चे नही होंगे। अब क्या करूं ?? और समाज कल्याण विभाग से भी एक आदमी आया था। एक हजार रूपये मांग रहा है रिपोर्ट देने की। उसने सही रिपोर्ट बनाकर नही दी तो आगे कुछ नही हो सकता ऐसा वो बोल रहा है। क्या करूं??? ' - प्रियंका ने फोन पर बताया।
' दे दो उसे रूपये। स्साले कुत्ते ने रिपोर्ट सही नही दी तो हमारी फाईल रिजेक्ट हो जाएगी '- बड़े भैया ने प्रियंका को समझाया।
अब हमे एडोप्शन कमेटी को भी तो खुश करना था। उनकी और से ना हो गई तो ???
'सर! वो जो बच्ची हॉस्पिटल में लाई गई थी उसे एक दंपत्ति गोद लेना चाहते हैं। आप की स्वीकृति भी चाहिये. प्लीज़ .... बच्ची एक अच्छे परिवार में चली जाएगी। आप कुछ करिये प्लीज़ '
बड़ी बेरुखी से उन्होंने जवाब दिया - 'आपने मुझ से मिलना जरूरी नही समझा? हमारे पास कोई बच्चा बच्ची नही है. आप डाइरेक्ट कलेक्टर साहब से मिल लिये. उनके पास या समाज कल्याणअधिकारी के पास बच्चा हो तो उन्ही से ले लिजिये. हमारे पास बच्चा है ही नही। आपने पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष से फोन करवाया। सिफारिश से काम नही होता है हमारे यहाँ. समझी आप??- ये वो महाशय थे जिन पर जिम्मेदारी थी 'ऐसे'बच्चो को परिवारों से जोड़ने की।
'सर! हमे समाज कल्याण विभाग में किसी ने नही बताया कि आप से भी मिलना है. हम दस बार आपके घर आ जाते सर!' - अपने उबलते क्रोध को दबाकर 'इन्होने जवाब दिया।
थेंक गॉड ! कलक्टर साहब से हमारी मीटिंग वहीँ सर्विस करने वाले मेरे चचेरे भाई ने करवाई। उन्होंने समाज कल्याण अधिकारी को बुलाकर 'डोज़ ' दी। और पेपर्स तैयार हो गये।
'वैसे अनाथालय में एक भी बच्चा नही है। आप देख लिजिये. हो सकता है आपकी किस्मत का कोई बच्चा मिल जाये आपको'- समाज कल्याण अधिकारी महोदय ने पेपर से तैयार करके प्रियंका और उसके पति को देते हुए कहा। हाँ वो बधाई देना न भूले नये नये पापा मम्मी बनने वाले दम्पत्ति को।
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'पालना घर' के अधिकारी भी किसी मंत्री या कलेक्टर से कम न थे। उन्होंने भी खूब फ्राई किया।
चूँकि हमे बच्ची को लेना ही था ........हम सब सहन करते रहे।उस समय पालना घर में दस बच्चे थे आठ लडकियाँ दो लड़के।
और……आखिर में 'वो' गुडिया प्रियंका और उसके पति की गोद में दे दी गई। पालना घर के संचालक बड़े ही भावुक और अच्छे इंसान थे। बोले - ' आपको कोई परेशानी तो नही हुई?? मेरे स्टाफ से कोई शिकायत ……कोइ प्रोब्लम ??'
'नही नहीं हमे सबने बहुत सपोर्ट किया है सर! ' - हम सभी एक साथ बोल पड़े।
कोई दंपत्ति जब बच्चा गोद लेना चाहता है तो उसे ढेर सारी प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है……इतनी कि आधे से ज्यादा लोग उन से घबरा कर ही बच्चा गोद लेने की हिम्मत नही जुटा पाते। प्रियंका और उसके पति हर परेशानी का सामना करने को तैयार थे। प्रियंका की सास की हिम्मत से ही यह सब हो पाया . और……गुडिया गोद में आते ही वे सब भूल गये परेशानी, भाग दौड़, लोगों की बे-अदबियाँ, उनकी निष्ठूरता … सब कुछ।
उनका चाँद उनकी गोद में था। और आज…….इन कामों में मैं अकेली नहीं ....प्रियंका का परिवार भी इस पुनीत कार्य में जुड़ गया है मुझ से। वे निसंतान दम्पत्तियों को मोटिवेट करते हैं कि………वे भी एक चाँद अपने घर ला सकते हैं। मैं खुश हूँ . आप????? आइये इस मिशन में शामिल हो जाईये न। :)
प्रियंका अपने पति और अपनी गुडिया के साथ
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